story

मन – एक चोर

चारपाई की बांई ओर कमल परेशान सा बैठा है। जाहिर है कि अभी तक उसने नाश्ता नहीं किया।

भरत, दुकान पर जाने के लिए तैयार है।
अभी तक उसने बाल नहीं बनाये हैं या शायद उनके बीच अचानक से शुरू हुई बात ने किसी और चीज का मौका ही नहीं दिया।

“तुम पागल हो, 60 हज़ार के गहने कोई मामूली चीज़ नहीं है। जीवन में ऐसे मौके बार-बार नहीं आते।”
भरत कमल के मन में उन गहनों को लेकर लालसा जगाने की कोशिश करता है।


“पर वह गहने रोशनी की माँ ने मुझे बड़े विश्वास के साथ दिए हैं ” कमल कहता है।

“मैं ऐसे किसी का विश्वास नहीं तोड़ूंगा।”


दरअसल रौशनी के जुआरी पिता के डर से रौशनी की माँ ने अपने गहने मास्टर जी को दिए थे ताकि जब तक रौशनी का ब्याह ना हो जाए तब तक मास्टर जी उन्हें संभाले।

पर भरत की गंदी नज़र उन पर पड़ चुकी थी। और वह उन्हें बेचना चाह रहा था पर यह बात मन ही मन कमल को खाए जा रही थी।

भरत कहता है – “रूपये का दूसरा नाम दयानतदारी है।”
“आज की दुनिया में गरीब की दयानतदारी भी बड़बयानी समझी जाती है”

उन रूपयों से कमल अपने सारे सपने पूरे कर सकता है, पहले से बड़ा स्कूल खोल सकता है,
पर कमल की अंतरात्मा यह करने की इजाजत नहीं दे रही।
भरत के हिसाब से मन और अंतरात्मा का ख्याल रखने वाले सदियों पिछली पंक्तियों में खड़े मिले हैं आगे बढ़ना और ऊंचा उड़ना उनके भाग्य में नहीं।


कमल अपने उसूलों पर खरा उतरने वाला व्यक्ति था उसने जल्दी ही रौशनी की माँ को घर आने का बुलावा भेजा।
कमल अलमारी से गहने निकाल लाता है और उन्हें रौशनी की माँ के सामने रख देता है।


रौशनी की माँ हैरान हो गई और उन्होंने कहा “लेकिन आपने वादा किया था कि रौशनी की शादी तक आप इन्हें अपने पास रखेंगे”।
“मुझे इनके चोरी हो जाने का डर है आप जिस तरह यह अमानत शौंप गई थी उसी तरह वापस ले जाएं”
यह सुनकर रौशनी की माँ ने कहा “चोरी तो मेरे यहां भी हो सकती है , कोई बाहर का वाला ना तो घर वाला ही डाका डाल सकता है”

“तुम नहीं समझ रही रौशनी की माँ मुझे बाहर के चोर का नहीं अंदर के चोर का डर है”
कमल ने थोड़ा रुक कर गहरी सांस लेकर आगे कहा –

“यह मैंने कभी नहीं सोचा था,
पर अब मुझे मेरे मन से भय है।
मुझे मेरे मन का भरोसा नहीं रहा…
ना जाने कब यही चोर बन जाये…….”

“मन – एक चोर”

4 Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *